कर्पूरी ठाकुर Karpoori Thakur को मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान : अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो

कर्पूरी ठाकुर [Karpoori Thakur] को मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो : कार्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में एक उज्ज्वल समाजवादी नेता थे जिन्होंने राज्य के इतिहास पर  अमिट छाप छोड़ी है।कार्पूरी ठाकुर को कमजोर वर्गों के उत्थान और सामाजिक न्याय के सुधार के लिए जाना जता है , उनके असाधारण कार्यों को स्वीकारते हुए, वर्तमाना सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का  फैसला लिया है, आइए जानते हैं कौन थे कार्पूरी ठाकुर ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्पूरी ठाकुर को “सामाजिक न्याय का नक्षत्र” कहा और कहा कि “यह प्रतिष्ठित सम्मान उनके हाशिए के लोगों के हिमायती और समानता तथा सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक के रूप में उनके निरंतर प्रयासों का प्रमाण है।”

Karpoori Thakur

यह भी देखें ….कौन हैं Arun Yogiraj ? जिन्होंने पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को किया साकार 

कौन थे कार्पूरी ठाकुर [Karpoori Thakur]

इन्हें हम सभी एक स्वत्रन्त्रा सेनानी , एक शिक्षक और एक राजनीतिज्ञ के रूप में जानते हैं , कार्पूरी ठाकुर का जन्म 25 जनवरी 1924  कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान  समस्तीपुर जिले  के एक गांव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था। उनके पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमान्त किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा बाल काटने का काम करते थे। नाई समुदाय में जन्मे, कार्पूरी ठाकुर का सफर एक सीमांत किसान के बेटे से एक श्रद्धेय राजनीतिक हस्ती बनने तक उनके पिछड़े वर्गों के उत्थान के प्रति समर्पण और सेवा का प्रमाण है।

उन्होंने 1940 में मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी में पास की। 1942 का  भारत छोडो आन्दोलन में कूद पड़े। परिणामस्वरूप 26 महीने तक  भागलपुर  के कैंप जेल में जेल-यातना भुगतने के उपरांत 1945 में रिहा हुए। 1948 में आचर्य नरेन्द्रदेव और जयप्रकाश नारायण  के समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री बने। सन् 1967 के आम चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सामाजिक दल (संसोपा ) बड़ी ताकत के रूप में उभरी।

1970 में उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। वो बिहार के 11 वें मुख्यमंत्री थे | 1973-77 में वे लोकनायक जयप्रकाश के छात्र-आंदोलन से जुड़ गए। 1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। 24 जून, 1977 को पुनः मुख्यमंत्री बने। फिर 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर नेता बने। 17 फरवरी 1988 को 64 वर्ष की उम्र में इनका देहांत हो गया |

Karpoori Thakur

यह भी देखें…pradhanmantri suryoday yojana 2024 पीएम मोदी की बड़ी घोषणा 1 करोड़ घरों पर लगेंगे सोलर पैनल

ईमानदार व्यक्तित्व और सहज जीवन शैली के धनी [Karpoori Thakur]

कार्पूरी ठाकुर ईमानदार व्यक्तित्व के व्त्यक्ति थे , जिससे वे राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और समाजवादी खेमे

के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी। वे सरकार बनाने के लिए लचीला रूख अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे। यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फ़ैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी।

  • एक बार विधायक रहते हुए इन्हें आस्ट्रिया जाना अता इनके पास कोट नही था तब इन्होने अपने दोस्त से कोट उधार लिया,
  • ईमानदारी इतनी की दो बार मुख्यमंत्री रहते हुए भी एक कार तक नही ली हमेशा रिक्से से चलते थे
  • और ख़ास ये  की उस समय जो भी लोग अंतरजातीय विवाह करते ठाकुर उसमें जरूर शरीक होने पहुंच जाते |

कार्पूरी ठाकुर ने बिना किसी दिखावे के एक सहज जीवन जीया और हमेशा समाज की भलाई के लिए ईमानदारी से काम करते रहे |

कार्पूरी ठाकुर का नारा [Karpoori Thakur]

कार्पूरी ठाकुर हमेशा देशवासियों को सदैव अपने अधिकारों को जानने के लिए जगाते रहे, वह कहते थे-

“संसद के विशेषाधिकार कायम रहें, अक्षुण रहें, आवश्यकतानुसार बढ़ते रहें। परंतु जनता के अधिकार भी। यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो जनता आज-न-कल संसद के विशेषाधिकारओं को चुनौती देगी”

कर्पूरी ठाकुर का चिर परिचित नारा था..

सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।

धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥

यह भी-

अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो

पग पग पर अड़ना सीखो

जीना है तो मरना सीखो।

कार्पूरी ठाकुर की मृत्यु

कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।

कार्पूरी ठाकुर की महत्वपूर्ण उपलब्धियां [Karpoori Thakur]

ठाकुर के राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां रहीं। 1970 में राज्य के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री के रूप में इतिहास रचने से पहले उन्होंने बिहार के मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल सामाजिक सुधार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसका उदाहरण बिहार में पूर्ण शराबबंदी का फैसला रहा।

इसके अतिरिक्त, उन्होंने बिहार के अविकसित क्षेत्रों में विशेष रूप से, कई स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, यह सुनिश्चित करते हुए कि शिक्षा उन लोगों तक पहुंच सके जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर थे।

कर्पूरी ठाकुर का प्रभाव उनकी प्रशासनिक भूमिकाओं से परे था। एक नेता के रूप में, वह अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के उत्थान के बारे में गहराई से चिंतित थे। मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए मंच तैयार करने में उनके प्रयास महत्वपूर्ण थे, जिन्होंने 1990 के दशक में ओबीसी के लिए आरक्षण की वकालत की थी।

1977 में, ठाकुर के मुख्यमंत्री पद के दौरान प्रस्तुत मुंगेर लाल आयोग की रिपोर्ट ने पिछड़े वर्गों को अति पिछड़े वर्ग और पिछड़े वर्गों में पुनर्वर्गीकरण की सिफारिश की, जिसमें मुसलमानों के कमजोर वर्ग भी शामिल थे। इस रिपोर्ट को 1978 में लागू किया गया, जो पिछड़े वर्गों के बीच सबसे वंचित लोगों की जरूरतों को पहचानने और उन्हें दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

ठाकुर की विरासत में बिहार के शिक्षा मंत्री रहते हुए मैट्रिक स्तर पर अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी को हटाना भी शामिल है, यह सुनिश्चित करने के लिए एक कदम उठाया गया कि शिक्षा से वंचित लोग पीड़ित न हों और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें।

कर्पूरी ठाकुर की नीतियों और पहलों का प्रभाव बिहार में पिछड़ी जाति की राजनीति के उदय में देखा जा सकता है। उनके काम ने पिछड़े वर्गों के उत्थान की नींव रखी, जिसने बाद में जनता दल (यूनाइटेड) या जद(यू) और राष्ट्रीय जनता दल जैसे क्षेत्रीय दलों के गठन को प्रभावित किया।

स्वतंत्रता के बाद पहली बार किए गए बिहार के हालिया जाति सर्वेक्षण ने ठाकुर की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश की है। सर्वेक्षण से पता चला है कि पिछड़े समुदाय बिहार की आबादी के लगभग दो-तिहाई हैं, जिसमें अति पिछड़े समुदाय 36.01% और पिछड़ी जातियां 27.12% हैं। इस डेटा में राजनीतिक रणनीतियों को फिर से आकार देने और यह सुनिश्चित करने की क्षमता है कि नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण उनकी आबादी के अनुपात में हो।

कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें अक्सर ‘जननायक’ या लोगों के हीरो के रूप में जाना जाता है, अपार सम्मान और प्रशंसा के प्रतीक बने हुए हैं।

मंगलवार को, सरकार ने घोषणा की कि दिवंगत समाजवादी नेता को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। “श्री ठाकुर को सम्मानित करके, सरकार उन्हें लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में उनकी भूमिका को मान्यता देती है। सरकार समाज के हाशिए के वर्गों के लिए एक प्रेरक व्यक्ति के रूप में उनके गहन प्रभाव को भी स्वीकार करती है। उनका जीवन और कार्य भारतीय संविधान की भावना को मूर्त रूप देते हैं, जो सभी के लिए समानता, बंधुत्व और न्याय की वकालत करता है,” बयान में लिखा गया।

क्या कहते हैं राजनीतिज्ञ

बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने के एलान का स्वागत करते हुए बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने केंद्र से बड़ी मांग की है.

सोशल मीडिया साइट एक्स पर मायावती ने लिखा- देश में खासकर अति-पिछड़ों को उनके संवैधानिक हक के लिए आजीवन कड़ा संघर्ष करके उन्हें सामाजिक न्याय व समानता का जीवन दिलाने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर को आज उनकी 100वीं जयंती पर अपार श्रद्धा-सुमन अर्पित.

उन्होंने लिखा- बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे देश के ऐसे महान व्यक्तित्व कर्पूरी ठाकुर को देर से ही सही अब भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने के केन्द्र सरकार के फैसले का स्वागत. देश के इस सर्वोच्च नागरकि सम्मान के लिए उनके परिवार व सभी अनुयाइयों आदि को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.

बसपा चीफ ने मांग की है कि इसी प्रकार दलितों एवं अन्य उपेक्षितों को आत्म-सम्मान के साथ जीने व उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बीएसपी के जन्मदाता एवं संस्थापक  कांशीराम का योगदान ऐतिहासिक व अविस्मरणीय है, जिन्हें करोड़ों लोगों की चाहत अनुसार भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करना जरूरी.

डिप्टी सीएम ब्रजेश और उपमुख्यमंत्री केशव ने कही ये बात
इसी मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, “1986 और 2024 के बीच कितना बड़ा अंतर है. जिस महापुरूष को सबसे पहले भारत रत्न दिया जाना चाहिए था उन्हें सम्मानित करने का काम कांग्रेस की सरकारों ने नहीं किया. मैं प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद करता हूं. आज 24 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर का शताब्दी वर्ष भी है. बिहार ही नहीं वे(कर्पूरी ठाकुर) पूरे देश विशेषकर पिछड़ों, वंचितों और गरीबों के मुख्यमंत्री थे. “

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा, ” प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत बड़ा काम किया है. ये निर्णय दर्शाता है कि प्रधानमंत्री मोदी वास्तव में सर्वमान्य नेता है. कर्पूरी ठाकुर  का पूरा जीवन पिछड़ों और प्रताड़ित लोगों की सेवा में बीत गया, लेकिन आज तक किसी भी सरकार ने उन्हें इस प्रकार का सम्मान देने का नहीं सोचा.:

FAQ कर्पूरी ठाकुर [Karpoori Thakur]

कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान  समस्तीपुर जिले  के एक गांव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था।

कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।

कर्पूरी ठाकुर का चिर परिचित नारा था.. सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है। धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥ यह भी- अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो | पग पग पर अड़ना सीखो | जीना है तो मरना सीखो।

1977 में, ठाकुर के मुख्यमंत्री पद के दौरान प्रस्तुत मुंगेर लाल आयोग की रिपोर्ट ने पिछड़े वर्गों को अति पिछड़े वर्ग और पिछड़े वर्गों में पुनर्वर्गीकरण की सिफारिश की, जिसमें मुसलमानों के कमजोर वर्ग भी शामिल थे। इस रिपोर्ट को 1978 में लागू किया गया,

1970 में उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। वो बिहार के 11 वें मुख्यमंत्री थे |

No Content

यह भी देखे …Ram Mandir news : 22 जनवरी को RRB ALP Recruitment 2024 Notification :  रेलवे में बंपर भर्ती की घोषणा CTET Admit Card 2024 download here  UGC NET Result 2024  Dhruv Jurel cricketer : धोनी को मानते हैं आदर्श, सपने को सच करने के लिए.

Leave a comment

Discover more from न्यूज़हिंद टाइम्स

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Exit mobile version